संस्कृत पद्य साहित्य का उद्भव एवं विकास
संस्कृत पद्य साहित्य का उद्भव एवं विकास
पद्य साहित्य को सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में ही देखा जाता है इसका कारण यह है कि संस्कृत की सर्वप्राचीन भाषा रही है तथा वेदों के पश्चात् सर्वप्रथम रचित ग्रन्थ आदि काव्य रामायण है वस्तुत: काव्य (पद्य ) बीज तो वेदों में ही मिलते हैं किन्तु उनके काव्य ग्रन्थ में संकलन की स्थिति नहीं मिलती भारतीय कवियों को काव्य निर्माण की प्रेरणा के मूलभूत स्तोत्र रामायण और महाभारत में सन्निहित है।
रामायण को आदि काव्य कहा जाता है जिसका अंगीरस करुण है महाभारत का अंगीरस शान्त रस है इनके बाद लिखे जाने वाले महाकाव्यों शृंखला लम्बी है इनकी रचना करते समय बाद के सभी कवियों ने अपने अपने महाकाव्यों की रचना के लिए इन्ही से कथानक प्राप्त किये है इन्ही से नायक भी लिये है वर्णन कला भी इन्ही से सीखी है इस परम्परा में पाणिनि वररुचि से लेकर महाकवि कालिदास,माघ भारवि आदि अन्य कवि आते है इन सभी महाकवियों ने रामायण और महाभारत से विषय ग्रहण कर काव्य रचनाएं की अत एव रामायण और महाभारत उपजीव्य काव्य तथा ये सभी महाकाव्य उपजीवी कहे गये पद्य साहित्य में महाकाव्य एवं खंडकाव्य मुख्य तथा स्वीकृत है।
पद्य (काव्य) साहित्य का उद्भव-
पद्य जैसा उद्भव सर्वप्रथम ऋग्वेद के आख्यान सूक्तों इन्द्र वरुण आदि देवताओं की स्तुति किए गए मन्त्रों में दिखता है इसका सर्वप्रथम काव्य स्वरूप हमें रामायण में मिलता है रामायण को आदि काव्य तथा वाल्मीकि को आदिकवि कहने का आधार यही है
रामायण (आदिकाव्य)-
रामायण की रचना का आधार वाल्मीकि द्वारा व्याध के द्वारा एक क्रौञ्च की मृत्यु देखकर लिखा गया
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।
इसकी पुष्टि आचार्य आनन्दवर्धन ने अपने ग्रन्थ ध्वन्यालोक में भी की है-
क्रौञ्चद्वन्द्ववियोगोत्थ: शोक: श्लोकत्वमागत:।।(ध्वन्यालोक)
रामायण की रचना का समय ८०० से ६०० ई.पू. निर्धारित किया जाता है रामायण का अंगीरस करुण है इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सद्गुणों का वर्णन किया है
धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढवृतः।।
काव्य अपने मनोरम वर्णन के लिए जाना जाता है तथा कहा जाता है साहित्य समाज का दर्पण है इन सब का समावेश वाल्मीकि रामायण में है वाल्मीकि रामायण में प्रकृति का वर्णन भी कम मनोहर नहीं है -
ससारसारावविनादितासु नदीषु हंसा निपतति हृदय:।।(वा.रा.कि.-३०/४२)
करुण रस का वर्णन-
मद्विहीना वरारोहा हनुमन्कथयस्व मे।
दु:खाद् दु:खतरं प्राप्य कथं जीवति जानकी।।
विभिन्न काव्य शास्त्रीयों द्वारा की गई महाकाव्य की परिभाषा के सम्पूर्ण लक्षण रामायण में घटित होते हैं अत रामायण पद्य साहित्य का प्रथम काव्य है
महाभारतसंहिता
शतसाहस्रीसंहिता के नाम से प्रसिद्ध यह ऐसा ग्रन्थ है जिसके कथानक में अनेकों नायकों की उत्पत्ति तथा इसने तीन चरणों अपने स्वरूप को प्राप्त किया
जयसंहिता-8800श्लोक
भारतसंहिता-24000श्लोक
महाभारतसंहिता-100000श्लोक
१८पर्वों में विस्तृत इस महाग्रन्थ में कौरव एवं पाण्डवों की कथा वर्णित है सभी पर्वों में कौरव तथा पाण्डवों की पूर्ण कथा के साथ-साथ महाकाव्य के लक्षणोन पर घटित होने वाले समस्त वर्णन पाए जाते है।
महाभारत में कुल छ: उपाख्यान शाकुन्तलोपाख्यान आदिपर्व में तथा शेष पांच मत्स्योपाख्यान,रामोपाख्यान,शिवि उपाख्यान, साहित्री उपाख्यान, नलोपाख्यान सभी वन पर्व में हैं
महाभारत धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष के वर्णन सामग्रियों से भरा हुआ महर्षि वेदव्यास रचित एक विशालकाय ग्रन्थ है महाभारत में एक महाकाव्य की कसौटी के लिए सभी श्रेष्ठ वर्णन उपलब्ध होता है अत एव वेदव्यास ने स्वयं लिखा है
इसमेन ही प्रत्येक मनुष्य के मार्गोनपदेशक स्वरूप भगवद्गीता प्राप्त होती है जो १८अध्यायों में है जो यह अलग बात है कि महाकाव्य के लक्षण बाद में लिखी गई जिनके आधार पर आलोचक इन दोनों को महाकाव्य मानते रामायण आदि काव्य महाभारत इतिहास काव्य के रूप में प्रसिद्ध है इस प्रकार पद्य साहित्य का उद्भव इन्हीं दोनों महाग्रन्थों से माना जाता है ।
पद्य साहित्य का विकास-
रामायण और महाभारत के पश्चात् व्याकरण शास्त्र के प्रणेता पाणिनि-रचित पातालविजय नामक महाकाव्य प्राप्त होता है जिसका उल्लेख रुद्रट के टीकाकार नामिसाधु ने-"तथाहि पाणिने: पातालविजये महाकाव्ये सन्ध्यावधूंगृह्यकरेण" और दूसरा "जाम्बवती" के नाम राजशेखर ने उद्धृत किया है
आदौ व्याकरणं काव्यमनु जाम्बवती जय:।।
यह दोनों काव्य अप्राप्य हैं तथा इनका समय ४५०ई.पू. माना जाता है।
पाणिनि के पश्चात् आचार्य वररुचि का ३५०ई.पू. में "स्वर्गारोहण" काव्य-ग्रन्थ उपलब्ध होता है । जिसका उल्लेख पतंजलि ने "वारुरुचं काव्यम्" कहकर महाभारत में किया है, पतंजलि ने स्वयं भी महानन्द नामक काव्य की रचना की है।तत्कालीन शिलाशेलों में अलंकृत काव्यशैली की रचनाओं से काव्यकला का विकास परिलक्षित होता है।
महाकवि कालिदास ने अपनी रचनाएं कब की कहना कठिन है परन्तु अनेक विद्वान् कालिदास को गुप्तकालिन मानते हैं। इनके द्वारा पद्य साहित्य में महाकाव्य दो खंड काव्य लिखे गए ।
कालिदास साहित्य (पद्य साहित्य का उत्कर्ष)
लौकिक संस्कृत भाषा में कविता लिखने का दायित्व वाल्मीकि से हुआ परन्तु कालिदास की गणना संस्कृत महाकाव्य के उत्कर्ष के रूप में की जाती है ।
महाकाव्य के सूत्रबद्ध लक्षण-
जो हमें प्राप्त होते उनके आधार पर महाकाव्य की दृष्टि से परिमार्जित रूप में कालिदास के महाकाव्य हमें प्राप्त होते हैं । कालिदास वैदर्भी रीति के कवि है, पुराने कवियों की गणना करते उनकी गणना कनिष्ठिका उंगली में की जाती हैं ।
इनके दो महाकाव्य हैं-
रघुवंश-
रघुवंश सभी साहित्यशास्त्रियों की दृष्टि में श्रेष्ठ महाकाव्य है इसमें कुल१९ सर्ग हैं। इस महाकाव्य में रामराज्याभिषेक विवाह,स्वयंवर,युद्ध आदि अत्यंत वर्णन किया गया है।
रघुवंश के मंगलाचरण से ही कालिदास की उपमा परिपाक दर्शनीय है तथा उनकी उपमासम्राट उपाधि का परिचापक भी-
जगत: पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ।।
कुमारसम्भवम्-
इस महाकाव्य में कालिदास ने शिव-पार्वती के साथ साथ कार्तिकेय के जन्म का भी वर्णन किया है। इस महाकाव्य को १७ सर्गों में लिखा गया है ,जिसमें से केवल ८ सर्ग ही कालिदासकृत् माने जाते हैं ,फिर भी यह वर्णन की दृष्टि से महाकाव्य के समस्त लक्षणों को प्राप्त है।
मेघदूतम्-
दो भागों में विभक्त यह खण्डकाव्य अत्यन्त रमणीय है। कालिदास ने इसमें यक्ष और मेघ के माध्यम से प्रकृति और प्रेम का सुन्दर संयोग प्रस्तुत किया है।
कालिदास को शृंगार रस का कवि कहा जाता है और उनका प्रकृति के साथ शृंगार संयोग पाठकों में अलग ही आनन्द की अनुभूति को उत्पन्न करता है। इस पंक्ति में नदी और मेघ के आरोप द्वारा शृंगारिक वर्णन अद्भुत है-
संसर्पन्त्या: स्खलितसुभगं दर्शितावर्तनाभे:।
निर्विन्धाया: पथि भव रसाभ्यन्तर: सन्निपत्य
स्त्रीणामाद्यं प्रणयवचनं विभ्रमो हि प्रियेषु।।
कालिदास ने अर्थान्तरन्यास के प्रयोग द्वारा काव्यसौष्ठव का उन्नयन किया है-
न धर्मवृद्धेषु वय: समीक्षते ।(कुमार.5/10)
पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते ।(रघुवंश.3/62)
कार्मार्ता हि प्रकृतिकृपणा चेतनाचेतनेषु(मेघदूतपूर्व.6)
महाकाव्य के इस वाकास क्रम में कालिदास के बाद अश्वघोष का नाम लिया जाता है महाकाव्य की दृष्टि से अश्वघोष की दो रचनाएं हैं
१ बुद्धचरितमहाकाव्य-
यह अश्वघोष द्वारा २८ सर्गों में रचा गया महाकाव्य है किन्तु इसके दो से तेरह सर्ग ही प्राप्त होते हैं अपूर्ण होता हुआ भी यह महाकाव्य परम्परा का निर्वाह करता है इसमें बुद्ध के जन्म से लेकर प्रथम संगति तक की कथा निबद्ध है। संस्कृत भाषा में यह काव्य अधुरा है किन्तु इसका चीनी और तिब्बती भाषा में भी अनुवाद हुआ है। अश्वघोष की भाषा कालिदास जैसी मार्मिक तो नहीं परन्तु अश्वघोष वैदर्भी शैली से पाठकों को निरस उपदेशों की ओर आकृष्ट करना चाहते थे। सूर्योदय,चन्द्रोदय आदि सभी वर्णनों को प्रस्तुत करने में अश्वघोष निपुण है।
२ सौन्दरानन्द-
यह १८ सर्गों में निबद्ध है यह काव्य सिद्धार्थ के भाई नन्द को कामुकता से हराकर संग में दीक्षित होने का भव्य वर्णन करता है काव्य दृष्टि से बुद्धचरित की अपेक्षा यह अधिक स्निग्ध और सुन्दर है।
भारवि-
अश्वघोष के बाद मातृचेट आर्यशूर आदि अनेक कवि हुए हैं परन्तु उनकी काव्य रचनाएं उपलब्ध नहीं होती है अश्वघोष के बाद भारवि ऐसे कवि है जिन्होने काव्य सृजन में एक नये मार्ग विचित्र मार्ग को जन्म दिया जो बाद में माघ हर्ष के द्वारा विस्तार को प्राप्त हुआ। इनके महाकाव्य का नाम किरातार्जुनीयम् है।
किरातार्जुनीयम्-
भारवि के इस महाकाव्य का आधार महाभारत का वनपर्व है यह18 सर्गों में विभक्त है तथा इसमें अर्जुन वनगमन के पश्चात् किरात वेशधारी भगवान् शिव पाशुपतास्त्र प्राप्ति का अत्यन्त सुन्दर चित्रण है महाकाव्य के अनुसार जब नदी पर्वत आदि सभी अंगों का वर्णन हैं इसका अंगीरस वीर है इस महाकाव्य में शासन से लेकर सभी अंगों में अपने वर्णन कला के द्वारा किरात में महाकाव्यत्व को सिद्ध किया है ।अर्थगौरव की दृष्टि से इस महाकाव्य के लिए अत्यन्त प्रतिष्ठित कवि है।
अन्य प्रतिष्ठित (प्रमुख)काव्य-
संस्कृत महाकाव्य की विकास परम्परा में कालिदास आदि के बाद संस्कृत पद्य साहित्य में अनेक महाकवियों ने काव्य प्रणयन किया है उनमें से खुद प्रमुख महाकाव्य -
रावणवधमहाकाव्य-
इसको भट्टिक्व्य भी कहा जाता है २२ सर्गों में विभाजित यह महाकाव्य के समस्त लक्षणों से परिपूर्ण है चार काण्डों में विभाजित इस महाकाव्य में राम जन्म से लेकर रावण वध तथा अयोध्या वापस आने तक की कथा का वर्णन है
जानीहरणमहाकाव्य
कुमारदास रचित इस महाकाव्य के १५ सर्ग ही प्राप्त हुए इसमें राजा दशरथ की जलकेलि वर्षा वर्णन तथा राक्षसों की कमनीय केलि का वर्णन महाकाव्यता स्थापित करने के लिए किया गया है शैली की दृष्टि से यह काव्य कालिदास से प्रभावित दिखाई पड़ता है
शिशुपालवधमहाकाव्य-
महाकवि माघ रचित इस महाकाव्य में २० सर्गों में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा शिशुपाल के वध का विस्तृत मार्मिक एवं सुन्दर वर्णन है माघ कालिदास की उपमाभारवि के अर्थगौरव और दण्डी के पदलालित्य के समन्वित रूप के लिए प्रसिद्ध है।
दशावतारचरित-
क्षेमेन्द्र द्वारा रचित इस महाकाव्य में भगवान् विष्णु के दशावतारों का अत्यन्त रमणीय सरस,उदात्त तथा काव्यात्मक वर्णन है।
श्रीकण्ठचरित-
पद्य साहित्य के बृहत् इतिहास में क्षेमेन्द्र के पश्चात् मंखक का नाम लिया जाता है २५ सर्गों में विभक्त यह महाकाव्य भगवान् शिव और त्रिपुरासुर के युद्ध वर्णन से निबद्ध है इनकी शैली कोमल है तथा पदों में लालित्य भी है।
धर्मशर्माभ्युदय-
जैन कवि हरिश्चन्द्र रचित महाकाव्य २१ सर्गों में विभक्त है। इसमें १५वें जैन तीर्थंकर धर्मनाथ के जीवन चरित का चित्रण है।
नैषधीयचरितमहाकाव्य-
किरातार्जुनीय और शिशुपालवध के साथ काव्यों की बृहत्त्रयी में सम्मिलित यह महाकाव्य महाकवि श्रीहर्ष द्वारा २२ सर्गों में चित्रित है। इस महाकाव्य में निषधराज नल के चरित्र का अत्यन्त रमणीय एवं पाण्डित्य पूर्ण शैली में चित्रण किया गया है। इसमें नल और दमयन्ती के रूप वर्णन, मृगया विहार, हंस प्रसंग ,दमयन्ती का स्वयंवर, नल का देवदूत बनना, सरस्वती द्वारा रचनाओं का परिचय नल दमयन्ती का विवाह, दमयन्ती नल का प्रथम रात्रि रुचिर वर्णन पाण्डित्यपूर्ण शैली मेें किया गया है।
वस्तुत: महाकाव्य की परम्परा भारत में अश्रुण्ण है जो रामायण और महाभारत के बाद निरन्तर चलती आ रही है। नये नये कथानक भी महाकाव्य के विषय बने इस इस शृंखला में ११४०वीं ईस्वीं का वाग्भट रचित नेमिचरित महाकाव्य, अमरचंदसूरि बालभारत १२४१ ईस्वीं , देवसूरि १२५० का पाण्डवचरित विशेष प्रसिद्ध है। इनके अलावा कविराजसूरि राघवपाण्डवीयम् १३ सर्गों का अद्भुत महाकाव्य है इसमें रामायण और महाभारत की कथा एक साथ पिरोई है। यह वक्रोक्ति परम्परा का अद्भुत महाकाव्य है । ऐतिहासिक महाकाव्य की परम्परा में पद्मगुप्त नवसाहसांकचरित १०५०ईस्वीं का है, इसके १८ सर्गों में परमार वंश के राजाओं के प्रमाण- पूर्वक ऐतिहासिक वर्णन उपलब्ध है। बिल्हण रचित विक्रमांकदेवचरितम् भी १८ सर्गों का महाकाव्य है इसमें कश्मीर के प्राकृतिक सौन्दर्य और वहां कि विद्वत्ता से लेकर १८ सर्गों में कल्याण के राजा विक्रमादित्य षष्ठ का विस्तार पूर्वक वर्णन है। ऐतिहासिक महाकाव्यों के कल्हण की राजतरंगिणी अति प्रसिद्ध कृति है जिसमें ८ तरंगों में कश्मीर के विभिन्न राजाओं का वर्णन है। अन्य ऐतिहासिक महाकाव्य हेमचन्द्रकृत कुमारपालचरित, सोमेश्वरकृत कीर्तिकौमुदी तथा जयानककृत पृथ्वीराजविजय है।
खण्डकाव्य-
संस्कृत पद्य साहित्य में एक अन्य विधा खंडकाव्य है जिसका पहला ग्रन्थ ऋतुसंहार में रूप में प्राप्त होता है।संस्कृत भाषा में ऋतुसंहार और मेघदूत उत्कृष्ट खंडकाव्य है, जिनके रचयिता कालिदास है।
ऋतुसंहार- इसमें ऋतुओं का काव्यमय तथा शृंगारपूर्ण वर्णन है ।
मेघदूत-
कालिदास रचित मेघदूत के दो भाग हैं पूर्वमेघ और उत्तरमेघ इसमें यक्ष के विरह का वर्णन है ।
इसके अतिरिक्त अन्य खंडकाव्य हंससंदेश,कपिदूत,पवनदूत आदि प्राप्त होते है।
गीतिकाव्य-
गीतिकाव्य को खण्डकाव्य के एक भेद के रुप मे स्वीकृत किया जाता है। गीतिकाव्यों में विरह,भक्ति तथा शृंगार संबन्धी गीत होते है।
कुछ प्रसिद्ध गीतिकाव्य -
गीतगोविन्द-
जयदेवरचित गीतगोविन्द में राधाकृष्ण की प्रेम लीला का वर्णन है।
चौरपञ्चाशिका-
बिल्हणरचित चौरपञ्चाशिका में राजकुमारी से कवि के गुप्त प्रमेय का वर्णन है ।
मुक्तककाव्य-
मुक्तककाव्य का प्रत्येक पद्य स्वतन्त्र एवं चमत्कारी होता है भर्तृहरि ने शतकत्रय लिखे हैं ।जो मुक्तक के उत्कृष्ट उदाहरण है-
१ नीतिशतक
२शृंगारशतक
३वैराग्यशतक
हरविजय-
हरविजय कश्मीरी कवि रत्नाकर रचित महाकाव्य है यह ५० सर्गों में विभक्त एक बृहत् काव्य है जिसमें भगवान् शिव की अन्धकासुर पर विजय का विस्तृत वर्णन है ।
कम्फिणाभ्युदय के लेखक शिवस्वामी है। क्षेमेन्द्र ने प्रसिद्ध रामायण महाभारत और बृहत्कथा पर रामायण-मञ्जरी, महाभारत-मञ्जरी, बृहत्कथामञ्जरी नाम से तीन महाकाव्य लिखे। नीलकंठदीक्षित रचित शिवलीलावर्णन, रामचन्द्ररचित पतंजलिचरित में महाकाव्य की धारा को को निरन्तर प्रवाहित किया। तदनंतर वेंकटनाथ ने यादवाभ्युदय, धनञ्जसूरि ने शत्रुञ्जय,वीरनन्दी ने चन्द्रप्रभाचरित का प्रणयन किया।
आधनिुक संस्कृत साहित्य-
कविता, कहानी, नाट्य तथा समीक्षादि किसी भी क्षेत्र में भारत की अन्य भाषाओंमें प्रणीत आधनिुक साहित्य के समक्ष अथवा उससे भी परतर प्रतीत होता है।पहले सप्रमाण निरूपित किया गया है कि विगत एक सौ वर्षों की अवधि में संस्कृतसाहित्य की सभी प्राचीन विधाओ के अतिरिक्त, पाश्चात्त्य साहित्य में प्रमख विधाओ से भी प्रभावित साहित्य की रचना पर्याप्त परिमाण में हुई है। सम्पूर्ण भारत में विभिन्नविद्वानों तथा कवियों ने संस्कृत के सर्वाङ्गीण विकास की दृष्टि से सहस्राधिक ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें अनेक कृतियाँ प्रकाशित हैं। उन पर समीक्षा ग्रन्थ भी आधनिुक भाषाओं में लिखे गए हैं। यहाँ अब संस्कृत की मौलिक साहित्यिक कृतियों तथा उनके लेखकों का सामान्य निर्देश किया जा रहा है—
• अर्वाचीन महाकाव्य—
साहित्यिक विधाओं में महाकाव्य रचना सबसे अधिक हुई है। न केवल प्राचीन कथानकों पर अपितु आधनिुक घटनाओं, महापुरुषों तथा ऐतिहासिक विषयों पर भी संस्कृत महाकाव्य प्राचीन लक्षणों का ध्यान रखते हुए लिखे गए हैं। उमापति द्विवेदी कृत पारिजातहरण ; प्रभुनाथ शास्त्री कृत गणपतिसम्भव; कृष्ण प्रसाद शर्मा कृत श्रीकृष्णचरितामृत; विन्ध्येश्वरी प्रसाद कृत कर्णार्जुनीयम् ; वसन्त त्र्यम्बक शेवडे कृत शम्भुवध, काशीनाथ द्विवेदी कृत रुक्मिणीहरण; रेवाप्रसादद्विवेदी कृत सीताचरित; राजेन्द्रमिश्र कृत वामनावतरण तथा जानकीजीवन इत्यादि प्राचीन कथाओ पर आधुनिक दृष्टिकोण से रचे गए महाकाव्य हैं।
अन्य कथानकों पर आश्रित महाकाव्यों में श्रीधर भास्कर वर्णेकर कृत शिवराज्योदय; उमाशकंर त्रिपाठी कृत छत्रपतिचरित; माधव श्रीहरि अणे कृत तिलकयशोऽर्णव; सत्यव्रतशास्त्री कृत बोधिसत्त्वचरित एवं इन्दिरागान्धिचरित; विश्वनाथ केशव छत्रे कृत सुभाषचरित, साधुशरणमिश्र कृत गान्धिचरित;
पद्मशास्त्री कृत लेनिनामृत, रेवाप्रसाद द्विवेदी कृत स्वातन्त्र्यसम्भव; वसन्त त्र्यम्बकशेवड़ेकृत स्वामिविवेकानन्दचरित; रामकुबेर मालवीय कृत मालवीयचरित; हरिहरप्रसादद्विवेदी कृत गोस्वामितुलसीदासचरित, द्विजेन्द्रनाथ शास्त्री कृत स्वराज्यविजय; शिवगोविन्द त्रिपाठी कृत गान्धिगौरव; अमीरचन्द्रशास्त्री कृत नेहरूचरित; रामभद्राचार्यकृत भार्गवराघवीय, ओगेटि परीक्षित शर्माकृत प्रतापरायनीय; जी. बी. पलसलुे कृत वीरसावरकरचरित इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
• खण्डकाव्य—
गीतिकाव्य आधनुिक काल में अपेक्षाकृत लघकुाव्य तथा गीत्यात्मक काव्य भी पर्याप्त रूप से लिखे गए हैं। संस्कृत पत्रिकाओ में प्रकाशित प्रकीर्णकाव्यों की संख्या भी निरंतर प्रवर्धमान है। कुछ गीतों तथा काव्यों में नवीनदृष्टि तथा छन्द के बन्धन को शिथिल करने की प्रवृत्ति भी प्राप्त होती है, फिर भी अधिसंख्य कवि प्राचीन छन्दों तथा गीतों के रूप में ही संस्कृत रचनाएँ करते हैं, भाव की दृष्टि से उनमें प्रत्यग्रता तथा नवीनता अवश्य रहती है। ऐसे काव्यों में विषयवस्तुका वैविध्य दिखाई पड़ता है।
आधनुिक खण्डकाव्यों में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री - कृत गीतवैभव; क्षमाराव कृत सत्याग्रहगीता; सत्यव्रत शास्त्री कृत थाइदेशविलास, शर्मण्यदेश, सुतरांविभाति (जर्मनी की यात्रा का वर्णन); आचार्यबच्चूलाल अवस्थी कृत प्रतानिनी; श्रीधर भास्कर वर्णेकर द्वारा रचित भारतरत्नशतक, रामकृष्णपरमहसीय, स्वातन्त्र्यवीरसम्भवम् इत्यादि ; जगन्नाथपाठक कृत कापिशायनी एवं आर्यासहस्राराम; बटुकनाथ शास्त्री कृत कल्लोलिनी; शिवजी उपाध्याय कृत शक्तिशतक तथा कुम्भशतक; राधावल्लभ त्रिपाठी कृत सम्प्लव, सन्धान, लहरीदशक, शारदापाद किङि्कणी एवंआवाहन; भारतभारती तथा राजेन्द्रमिश्र प्रणीत वाग्वधटी, मृद्वीका, श्रुतिम्भरा एवं मत्तवारणी; शालभञ्जिकादि; श्रीनिवास रथ कृत तदेव गगनं सैव धरा; भास्कराचार्य त्रिपाठी कृत, लघुरघुकाव्य , गीतकन्दलिका, उत्कलिका, लसल्लतिका एवं निरर्झिणी जनार्दन प्रसाद पाण्डेयमणि कृत निस्यन्दिनी, रागिणी; रमाकान्त शक्लु कृत भाति मे भारतम् ; इच्छाराम द्विवेदी कृत गीतमन्दाकिनी; हर्षदेव माधव कृत निष्क्रान्ता: सर्वे: कालोऽस्मि: रामसुमेर यादव कृत इन्दिरासौरभम् ; ्निरञ्जन मिश्र कृत के दारघाटी, आदि उल्लेखनीय हैं।
आधनुिक संस्कृत गीतिकारों में जानकीवल्लभ शास्त्री अपनी अभिनव दृष्टि के कारण विशेष उल्लेखनीय हैं। काकली (1935) इनकी गीतियों का सुन्दर सङ्कलन है। इनका अन्य काव्य बन्दीमन्दिर कालिदास के मेघदतू की भावदृष्टि से अनुप्राणित है। मेघदूत की अनुकृति पर दूतकाव्यों की रचना आधनुिक युग में भी पर्याप्त रूप से हुई है, जैसे — श्रीनारायणरथ कृत कपोतदूत ; अभिराजराजेन्द्र कृत मृगाङ्कदूत ; राजगोपाल आयंगर कृत काकदूत, दयानिधिमिश्र कृत सूर्यदूत इत्यादि। पण्डित रामावतार शर्मा मेघदूत के विडम्बनाकाव्य (Parody) के रूप में मुद्गरदूत की रचना 1910 ई. में की थी।
इस प्रकार संस्कृत पद्य साहित्य की नदी वेदों से निकलती हुई रामायण से प्रकट होकर कालिदास, भारवि, माघादि महाकवियों की लेखनी पर आरूढ होकर निरन्तर विस्तार को प्राप्त होती हुई, विभिन्न संक्रमण - आक्रमण को पीछे छोड़ती हुई अद्यावधि पर्यंत सतत प्रवाहित है।
Bhut hi sarahneey karya h
जवाब देंहटाएंप्रयास उत्तम है।
हटाएंयह संकलन बहुत सराहनीय है क्योंकि यह हम लोगों के बहुत उपयोगी है, इसी तरह के संकलन आगे भी करते रहिए thank you 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय कार्य 👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंशानदार रोहित जी 👌👌
जवाब देंहटाएंगज़ब जबरदस्त शानदार
जवाब देंहटाएंशोभनम्
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास 🙏🏼 धन्यवाद शास्त्री जी 🙏🏼🙏🏼
जवाब देंहटाएंGreat content 👍 very useful for everyone ☺️
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर मित्र🙏🙏🙏❤️
जवाब देंहटाएंअद्भुत अतिसुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा प्रयास 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा मास्टर
जवाब देंहटाएंसर जी !आपके द्वारा संकलित उपर्युक्त सारगर्भित विषय -सामग्री हम जैसे छात्रों के लिये अत्यंत लाभप्रद है। हम अपेक्षा करते हैं कि आप हमारा इसी प्रकार निरन्तर ज्ञानवर्धन करते रहेंगे। सादर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंBahut sundar bhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाई जी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आगे भी ऐसा सुन्दर लिखते रहें।
जवाब देंहटाएंअद्भुत लेखन प्रिय मित्र 👌👍
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंउपयोगी है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं